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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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1.म्हारां राजस्थानी प्रेमी दोस्तां - शम्भु चौधरी



म्हारां राजस्थानी प्रेमी दोस्तां

संदर्भ - समाज विकास पत्रिका
अगस्त 2009, पेज न.- 8, अंक 8
प्रस्तुति - शम्भु चौधरी

15 अगस्त ने जद मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा गीत गाविज रह्यो हो, तो समुद्र री लहरा री तरिया म्हारे मन में घणी उथल-पुथल होवण लागी। आपारै देश मांय किति विविधता है। हर राज्य री आपरी अलग-अलग कला-संस्कृति-साहित्य-भाषा-वेशभूषा, बोली, पहनावो, खान पान, रेवण-सेवण, लोगां रा अलग-अलग धर्म अर नीं जाणे कई-कई, पण सब ने एक ताल अर सुर पर थिरकते देख्यो जा सकिजे है। एक समय रुस में इणी तरह छोटा-छोटा प्रान्त हा, पण विरे बिखराव ने कोई भी चाव'र भी नीं रोक पायों। पूरी री पूरी शक्ति विफल हुयगी, इणरो राजनैतिक पहलू जिको भी रह्यो हो म्हारी दृष्टि में एक कारण ओ भी हो कि बठे रे संगीत मांय बिखराव री बातां ज्यादा ही। जदकि भारत में जिका गीत-संगीत, गाया बजाया जावे है, भले हि बे कोई भी भाषा मांय क्यो न हो बियासु कठई न कठई आपाने एक सूत्र में जोडे राखणे री प्रेरणा मिले है। आपा जद पूरब देशां री तरफ एक नजर डाला हा ज्या कि जापान, चीन, आस्ट्रेलिया जापान में आपाने खाली जापानी संस्कृति हि देखणने मिले है, बिया हि चीन अर आस्ट्रेलिया जिसा देशा में भी आपरे-आपरे देश री एक हि प्रकार री मिलती-जुलती प्राय एक सी ही संस्कृति पाई जावे है। चीन में तो एक धर्म संस्कृति रेवते थके भी कई मतान्तर उभर'र सामने आवे है। तिब्तियन री बात ने लेवा या ताईवान री आजादी, कठई न कठई कोई कमजोर तार है जिको इया ने आपस में एक दूसरे सु अलग करे है। जद आपारी तरफ नजर डाला हा भारत विभाजन री बाता ने याद करा हा कि राजनैतिक कारणा रे अलावा और कई कई कारण हो सके है जिका आपारी एकता ने कमजोर कर देश रा दो टुकडा करणे पर आपाने विवश कर दियो हो, तो विण्सु सबसु बडो एक कारण जिको आपारे सामने आवे है बो है धर्म। पण धर्म रे आधार पर विभाजन रे बाद भी आपारी संस्कति, बिने आपासु अलग कर पाई, ना ही आपाने बिसु। जदकि खने रा देश अफगानिस्तान री संस्कृति सु एक धर्म होवते हुए भी पाकिस्तान आज तक नीं जुड पायो। एक धर्म होवणे पर भी बांग्लादेश, पाकिस्तान सु अलग हुयग्यो।

केवण रो मतलब यो है कि धर्म कठई भी कोई भी देश ने जोडने में कदई कोई खास भूमिका रो निर्वाह नीं कर पायो है। चाहे रुस री बात ला, चीन या भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश री बात ने सामने राखा।

मूल तत्व है जिको आपाने एक सूत्र में जोड्यो राखे है बो है आपारी भारतीय संस्कृति अर इण संस्कृति ने जोडयो राखे है इण देश रो साहित्य अर संगीत। जिको कदई भी कठई सु जद आपा कमजोर दिखा हा या तीसरी कोई शक्ति इने तोडणे रो प्रयास करे है तो च्यारांे कानी सु साहित्य आपरी कलम सु हमलों कर देवे है अन्त में तत्वा रे दम तोडणे रे अलावा दुसरो कोई विकल्प ही नीं बचे।

कई बार आपा देख्यो कि हिन्दी ने लेर कुछ प्रान्ता में विवाद हुया। हिन्दी रा बैनर फाडिया गया। हिन्दी बोलणे वाळा रे साथे मार-पीट हुवी। पण जद पूरो देश एकजुट हो'र इण तरह रे तत्वा पर हमलो करण लागे  है, तो बे ही लोग हिन्दी सीखण री बातां करणे लागे। तामिल, आंध्रा, महाराष्ट्र या बंगाल सब इण बात ने स्वीकार करिया है कि हिन्दी भाषा में अनुवाद रे बिना बियारो साहित्यिक कार्य अधूरो है।

पिछले दिनां राजस्थानी भाषा री मांग ने ले'र कई आंदोलनकाारियां ओ लिखणो शुरु कर दियो कि राजस्थानी भाषा री सबसु बडी दुशमन हिन्दी है। अतः बे हिन्दी रो बहिष्कार करे हैैै। मजे री बात आ ही की जिका लोग हिन्दी रो बहिष्कार कर रिया हा बे आपरी बात ने केवण वास्ते या तो देवनागरी लिपी रो उपयोग करता हा या पछे अंग्रेजी में आपरी बात केवता हा। म्हे बियाने पुछ्तो कि कई आप राजस्थानी री लडाई अंग्रेजी रो सहारो ले'र करणो चावो हो जवाब में बियारो एक मेल अंग्रेजी में आयो। जिके में हिन्दी पर सारो दोष मढते हुए कह्यो कि हिंदी भाषा ही सबसु बडी बाधक है राजस्थानी भाषा री मान्यता रे रास्ते में। जद म्हे बियासु पलटवार करियो कि आप जिकी राजस्थानी लिख रिया हो वा किसी लिपि रो सहारो ले'र लिख रिया हो? तो जवाब में बियारो मेल आयो कि बे आपरी बात ने सुधारे है। 'म्हारा राज्स्थानी प्रेमी दोस्ता'। आपां जिकी राजस्थानी भाषा री मान्यता री लडाई या वकालत कर रिया हा बिरे प्रति आपा अभी तक सही दिशा में कार्य करता नजर नीं आ रिया हां। नीं तो राजस्थानी जेडी स्मृद्ध भाषा ने संसद री मंजूरी ना मिले ऐडी कोई बात नजर नीं आवे। आपा भले हि राजस्थान री सब बोलियां ने राजस्थानी माना हा, इणमे किनेई कठे विवाद है ओ तो अटूट स्त्य हेै कि राजस्थान रे अनेक जिलां में बोली जाणे वाळी भाषा या बोलिया जैसे ब्रज, हाडौती, बागडी, ढूंढाणी, मेवाडी, मारवाडी, मालवी, शेखावटी आदि सब राजस्थानी भाषा हि है, इने राजस्थान रो गुलदस्तो केव दा यो भी सच है कि आपाने बोलियां सु प्यार है। सब आपारी मातृभाषा है। पण आपारी भावना सु समाधान कदई नीं निकळ सके। विधानसभा या संसद रे मांय इती सारी बोलिया ने एकत्रित कर बियारे वास्ते अलग-अलग ट्रांसलेटर राखणो कदापि संभव नीं हो सके। अनेक जिलां री अदालता रे वास्ते ओ कदापि संभव नीं होवेगो कि बे राजस्थान री अलग-अलग बोली रे वास्ते अलग-अलग अनुवादक राख पावे। राजस्थान रे साहित्यकारां ने यो सोचणो होवेगो कि बे इण बात रो समाधान किण तरे निकाळ पावेगा। जद तक आपा कोई एक मत तक नीं पोंच पावा या सब बोली रा विद्वान एक साथ बैठ'र कोई नुवो विकल्प नीं खोज लेवे आपा राजस्थानी भाषा ने कोई भी सम्मानजनक स्थान पर नीं पोंचा सका। भले हि कोई कई भी सोचे आपाने अंत में व्यवहारिक दृष्टिकोण पर विचार करणो पडेगों।

 

 

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